प्रख्यात पर्यावरणविद, समाजसेवी, सामाजिक चिंतक और प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पित स्व. श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी की जयन्ती पर स्मरण

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प्रख्यात पर्यावरणविद, समाजसेवी, सामाजिक चिंतक और प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पित व्यक्तित्व स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा

प्रख्यात पर्यावरणविद, समाजसेवी, सामाजिक चिंतक और प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पित, आदरणीय स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा जी की आज जयंती है। इस अवसर पर मैं उन्हें नमन करता हूं।

*कवि सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’

प्रख्यात पर्यावरणविद, समाजसेवी, सामाजिक चिंतक और प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पित व्यक्तित्व, आदरणीय स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा जी से मेरा संपर्क प्रथम बार 23 दिसंबर सन 1979 को सत्यौं (सकलाना) में हुआ था। उस समय में राजकीय इंटर कॉलेज पुजार गांव में छात्र और जनरल मॉनिटर था।

श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी खुरेत- पुजाल्डी के जंगलों को बचाने के अभियान के तहत समर्थन लेने सकलाना आए थे। कंधे में हैंड माइक लटकाए, पीठ पर पिट्ठू बांधे जब वह विद्यालय प्रांगण में आए और उनकी बातों को सुना तो किशोर मन में भी पर्यावरण संवर्धन के प्रति जागरूकता उत्पन्न हुई।

आदरणीय स्वर्गीय विशेश्वर दत्त सकलानी (वृक्ष मानव) और बड़े भाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री चतर सिंह नकोटी के साथ छात्रों की टोली सहित “वन बचाओ आंदोलन” के लिए खुरेत- पुजारी की तरफ कूच किया।

स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने मुझे संघर्ष समिति का अध्यक्ष नामित किया। यह ठेकेदारों के विरुद्ध एक जन- आंदोलन था जिनके कारण हमारी पहाड़ की पूरी पारिस्थितिकी बिगड़ रही थी।

वन विभाग की मिलीभगत के साथ ठेकेदार अंधाधुंध वृक्षों का पातन कर रहा था। जिससे पूरा इलाका खल्वाट बनता जा रहा था। वह समय आंदोलन की प्रकृति न समझने , छात्र नेता का जोश होने के कारण कुछ आवेशित भी होना पड़ा। ठेकेदार के विरुद्ध स्थल पर पंहुंचते ही प्रदर्शन कर दिया और वहां से भगाने को विवश करना शुरू किया।

आदरणीय बहुगुणा जी जो कि अहिंसा के पुजारी और गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति रहे हैं, समझा-बुझाकर छात्रों को शांत किया। मैंने भी अपने तरफ से काफी कोशिश की लेकिन मेरा समझना था कि युद्ध में भी शांति निहित होती है। ठेकेदार एक ही दिन में इतना आतंकित हो गया कि उसने अपने आरे-कुल्हाडों को समेटना शुरू कर दिया। कुछ समय के बाद मैं वापिस अपने कॉलेज चला आया और गांधीवादी तरीके से स्वर्गीय बहुगुणा जी ने यह आंदोलन चलाया।आन्दोलन सफल रहा।

स्व.श्री बहुगुणा जी के सानिध्य में रहकर काफी देखने समझने का भी अवसर मिला। मैं उनकी प्रत्येक बात का समर्थक नहीं था। वह बड़े बांधों के विरोधी थे लेकिन मै विकासवादी सोच का होने के कारण उनकी प्रत्येक बात से सहमत नहीं था। विचारधाराओं से प्रभावित होना अच्छी बात है लेकिन धारणाओं की पट्टी आंखों में बांधने से बुरा भी कुछ नहीं है।

जब बांध विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था, उस समय मैंने अपने एक लेख में लिखा ‘पूरे राष्ट्र की खुशहाली का प्रतीक है- टिहरी बांध’ जो साकेत मेरठ से दैनिक जागरण पर प्रकाशित हुआ था। यद्यपि श्री बहुगुणा जी को यह लेख अच्छा नहीं लगा। हो सकता है, वह समय मुझे कॉमन सेंस ना होने के कारण यह लेख लिखा हो। लेकिन बाद में बहुगुणा जी के बात समझ में आई और धीरे-धीरे मैं उनके पद चिन्हों पर चलने लगा।

अक्टूबर सन् 1989 को तीन-चार दिन क्रिश्चियन रिट्रीट सेंटर राजपुर (देहरादून) में ऑक्सफैम की बैठक में उनसे मुलाकात हुई और तीन-चार दिन का पर्याप्त समय एक दूसरे को समझने परखने में भी लगा। स्व.स्वामी मन मंथन, जयंतु बंधोपाध्याय, वंदना शिवा, स्वर्गीय राजीव नयन सकलानी आदि अनेकों विचारक उस बैठक में सम्मिलित थे।

स्वर्गीय बहुगुणा जी के देहरादून जाने के पश्चात मात्र एक बार ठक्कर बापा हॉस्टल, नई टिहरी में उनसे मुलाकात हुई। उसके बाद उनसे भेंट नहीं हो सकी। उनकी जयंती के अवसर पर मैं उस दिव्य आत्मा को नमन करते हुए अपने विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

(कवि कुटीर) सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल