रक्षाबंधन का त्यौहार गुरुवार 11 अगस्त 2022 को है

इस बार रक्षाबन्धन को लेकर विभिन्न प्रकार के विचार ज्योतिषाचार्यों द्वारा व्यक्त किए जा रहे हैं। इसी प्रकार की भ्रामक स्थिति को इस लेख में दूर करने का प्रयास किया गया है। ईं०/पं०सुन्दर लाल उनियाल (मैथिल ब्राह्मण) नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून द्वारा प्रेषित लेख में कहा गया है किः-

सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी व्रत पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति आदि से प्राप्त मानो का ज्योतिषीय परिगणन करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है। इस क्रम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है।

इस वर्ष पूर्णिमा के मान 11 अगस्त को प्रातः 9ः35 से आरंभ होकर 12 अगस्त के दिन प्रातः 7ः16 तक होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो गई है। कुछ लोग 11 तो कुछ लोग 12 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय दे रहे हैं।

अतः समाज में व्याप्त इस भ्रम के निवारण के लिए आज दिनाक 8 अगस्त 2022 ईस्वी को काशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पाण्डेय जी की अध्यक्षता में काशी के सभी वरिष्ठ ज्योतिषियों की बैठक संपन्न हुई, जिसमें प्रो. विनय कुमार पाण्डेय ने धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के रक्षा बन्धन एवं श्रावणी उपकर्म निर्णय सम्बन्धी उद्धरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए परंतु इदं प्रतिपत पुतायां न कार्यम् इस वचन के अनुसार पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर 6 घटी से न्यून हो तो उसमे रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए। इस वर्ष 12 तारीख को पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही है तथा 11 तारीख को 8ः25 बजे तक भद्रा है अतः 11 तारीख को ही रात्रि 8ः25 के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा जैसा कि कहा गया है। तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते ।

रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्ते

श्रावण पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण कर्म उपाकर्म भी होता है जिसका अनुष्ठान धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार 11 तारीख को ही पूर्णिमा तिथि में करना शास्त्र सम्मत रहेगा क्योंकि खंड रूप में पूर्णिमा का 2 दिन मान प्राप्त होने की स्थिति में द्वितीय दिन यदि दो/तीन घटी से अधिक और 6 घटी से कम पूर्णिमा प्राप्त हो रही हो तो कृष्ण यजुर्वेद की तैतरीय शाखा के लोगों को श्रवणी उपाकर्म दूसरे दिन तथा शुक जुर्वेदीय अन्य सभी शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म पूर्व दिन अर्थात 11 अगस्त को ही करना चाहिए उपा कर्म में भद्रा दोष नहीं लगता क्योंकि धर्म शास्त्र का जो वचन

भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रवणी फाल्गुनी तथा के रूप में उद्धृत है वहां श्रावणी शब्द से रक्षा बंधन का ग्रहण है उपाकर्म नहीं। क्योंकि:-

श्रावण्यां श्रावणीकर्म यथाविधि समाचरेत् । उपाकर्म तु कर्तव्यं कर्कटस्थे दिवाकरेद्य इत्यादि वचन दोनों को अलग अलग वर्णित कर रहे है।

अतः 11 तारीख को ही प्रातः 9ः35 के बाद श्रावणी उपाकर्म तथा रात्रि 8ः25 बजे के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा। पूर्णिमा को स्थिति एवं मान को देखकर धर्म शास्त्रीय वचनों का आश्रय लेते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया। इस संबंध में काशी विद्वत परिषद का भी निर्णय यही है इस बैठक में काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी जी भी उपस्थित रहे तथा उन्होंने परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ से संपर्क करते हुए 11 तारीख ही रक्षाबंधन और उपाकर्म निर्णय का भी अनुमोदन किया।

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पाण्डेय, प्रो. चंद्रमा पाण्डेय, प्रो. चंद्रमौली उपाध्याय, प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी, प्रो. माधव जनार्दन रहाते डॉ. सुभाष पाण्डेय आदि ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के विद्वान उपस्थित हुए तथा सभी विद्वानों ने विभिन्न पंचांगों में प्रदत पूर्णिमा की मानों तथा धर्मशास्त्र के वचनों की समीक्षा करते हुए 11 को 9ः35 के बाद उपाकर्म तथा 11 को ही रात्रि 8ः25 के बाद रक्षा बन्धन रक्षा बंधन को शास्त्र सम्मत बताया।

प्रसिद्ध आचार्य हर्षमणि बहुगुणा कहते हैंः- रक्षाबंधन का त्यौहार कल गुरुवार 11 अगस्त 2022 को है। गुरुडम की भावना ने अपने धर्म के प्रति आम लोगों की धारणा में आशंका उत्पन्न कर दी है और जब भ्रम हो जाता है तो लाख प्रयत्न करने के बाद भी तोड़ा नहीं जा सकता। अतः स्पष्ट कर दें कि मूहूर्त उसके लिए देखा जायेगा जिसका उपनयन संस्कार किया जाएगा, जिसका वेदाध्ययन प्रारम्भ किया जाएगा, जिसे लड़ाई के लिए प्रस्थान करना होगा। जिसने इस कामना के लिए रक्षासूत्र बांधना है।

अस्तु सामान्य राखी पहनने हेतु कोई प्रतिबन्ध नहीं है। फिर भद्रा है अभद्रा नहीं है, पाताल की भद्रा मंगल दायक है। अतः कल ग्यारह अगस्त को ग्यारह बजे के बाद राखी पहनिए और ईश्वर की कृपा से मंगल मय जीवन आनन्द से यापन कीजिए। सबके मंगल की अभिलाषा रखते हुए, शुभकामना करता हूं।